प्रेम की समझ : कविता



मेरे इन दोस्तों को
प्रेम शायद समझ आ चुका है
उन्होंने चुन लिया है किसी न किसी को
जीवनभर साथ का हमसफ़र

वे कहते है
उन्हें बेतहासा प्रेम है
अपनी प्रेमिकाओं से
और सच में दिखता भी है ऐसा
वे जब बताते है अपने किस्से
रात की लंबी बातों के
ड्यूटी से छुट्टी लेकर की गयी मुलाकातों के
भविष्य की उम्मीदों के
तो प्रेम दिखता है
उनकी नज़रों में

यही दोस्त मुझसे पूंछते है
तुम क्यों नहीं करते प्रेम
क्यों हमेशा यूँ उदास रहते हो

मैं क्या जवाब दूँ
मेरा प्रेम
कहाँ है????
इन कविताओं में???
जहाँ मैं रोज उसे खोजता हूँ
रोज पाता हूँ
रोज बिछड़ जाता हूँ।

मेरे दोस्तों को
प्रेम समझ आ चुका है।

 

सत्येंद्र कुमार
68A/58, ताम्बेश्वर नगर, जिला-फतेहपुर (उ0प्र0)
मो0- 9457826475

 

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