कविता: मेरा गांव, मेरा जीवन

गांव तेरे गोद में बचपन सुहाना बीत गया
चंद गलिया और अपनों में दिन पुराना बीत गया

पनघटों पर भरती गगरी और रात की लोरिया
ऐसी जिंदगी को देखते-2 एक जमाना बीत गया

मैं बड़ा क्यों हुआ और आया क्यों परदेश में
आज कुछ सोचूँ तो रोऊ मुस्कुराना बीत गया

खेत और खलिहान के वो पग डंडों से रास्ते
चिड़ियों की कतुहल के स्वर का आना बीत गया

गांव की गोरी की मुस्काती छवि और प्यार भी
कैसे उनको भूलू मैं उनका शर्माना बीत गया

चाँदनी रातो में छत पर मिलने को बेकरारी सी
थी नजाकत और शराफ़त फिर ख़ामोशी से आना बीत गया
- लव तिवारी

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