सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि वह इस मामले की सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ का गठन करेगा। सभी उच्च न्यायालयों को सीएए से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करने से संबंधित याचिकाओं पर निर्णय लेने पर रोक लगा दी है।
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने केंद्र की तरफ से बहस करते हुए कहा कि सरकार को 143 दलीलों में से केवल 60 की प्रतियां दी गई थीं और इसलिए जवाब देने के लिए अधिक समय की आवश्यकता थी। सीजेआई बोबडे ने कहा कि अदालत इस मामले को संविधान पीठ को सौंप सकती है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी, कपिल सिब्बल ने अदालत से सीएए के पर रोक लगाने और एनपीआर की प्रक्रिया को फिलहाल स्थगित करने का अनुरोध किया।
याचिकाओं में कहा गया है कि सीएए संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है और गैरकानूनी है। याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस सांसद जयराम रमेश, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और इसके सांसद, लोकसभा सांसद और एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और ट्राइबल रॉयल स्कोनियन प्रद्योत किशोर देब बर्मन शामिल हैं।
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने फिलहाल नागरिकता संशोधन कानून पर स्टे लगाने से इनकार कर दिया है. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एस. ए. बोबडे ने कहा कि हम अभी कोई भी आदेश जारी नहीं कर सकते हैं,
सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून पर सभी याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और 4 हफ्ते में जवाब मांगा है. वहीं, असम-त्रिपुरा से संबंधित याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र को 2 हफ्ते का वक्त दिया है.
सुप्रीम कोर्ट में CAA पर दायर याचिकाओं को अलग-अलग कैटेगरी में बांट दिया है. इसके तहत असम, नॉर्थ-ईस्ट के मसले पर अलग सुनवाई की जाएगी. वहीं, उत्तर प्रदेश में जो CAA की प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया है, उसको लेकर भी अलग से सुनवाई की जाएगी.
केंद्र सरकार के जवाब के बाद पांचवें हफ्ते में सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच CAA पर फिर से सुनवाई करेगी. तभी तय होगा कि इस मामले को पांच जजों की संवैधानिक बेंच के पास भेजा जाना चाहिए या नहीं.
सुनवाई खत्म होने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के अलग-अलग हाईकोर्ट में CAA के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर कोई भी आदेश जारी करने पर रोक लगा दी है.
दिसंबर महीने में शीर्ष अदालत ने केंद्र को नोटिस जारी किया। अदालत ने जनवरी में कानून के खिलाफ एक जरूरी सुनवाई से इनकार कर दिया था, और कहा था कि “देश कठिन समय से गुजर रहा है।” CJI ने कहा, “अदालत का काम एक कानून की वैधता निर्धारित करना है और इसे संवैधानिक घोषित नहीं करना है।”
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने केंद्र की तरफ से बहस करते हुए कहा कि सरकार को 143 दलीलों में से केवल 60 की प्रतियां दी गई थीं और इसलिए जवाब देने के लिए अधिक समय की आवश्यकता थी। सीजेआई बोबडे ने कहा कि अदालत इस मामले को संविधान पीठ को सौंप सकती है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी, कपिल सिब्बल ने अदालत से सीएए के पर रोक लगाने और एनपीआर की प्रक्रिया को फिलहाल स्थगित करने का अनुरोध किया।
याचिकाओं में कहा गया है कि सीएए संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है और गैरकानूनी है। याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस सांसद जयराम रमेश, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और इसके सांसद, लोकसभा सांसद और एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और ट्राइबल रॉयल स्कोनियन प्रद्योत किशोर देब बर्मन शामिल हैं।
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने फिलहाल नागरिकता संशोधन कानून पर स्टे लगाने से इनकार कर दिया है. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एस. ए. बोबडे ने कहा कि हम अभी कोई भी आदेश जारी नहीं कर सकते हैं,
सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून पर सभी याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और 4 हफ्ते में जवाब मांगा है. वहीं, असम-त्रिपुरा से संबंधित याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र को 2 हफ्ते का वक्त दिया है.
सुप्रीम कोर्ट में CAA पर दायर याचिकाओं को अलग-अलग कैटेगरी में बांट दिया है. इसके तहत असम, नॉर्थ-ईस्ट के मसले पर अलग सुनवाई की जाएगी. वहीं, उत्तर प्रदेश में जो CAA की प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया है, उसको लेकर भी अलग से सुनवाई की जाएगी.
केंद्र सरकार के जवाब के बाद पांचवें हफ्ते में सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच CAA पर फिर से सुनवाई करेगी. तभी तय होगा कि इस मामले को पांच जजों की संवैधानिक बेंच के पास भेजा जाना चाहिए या नहीं.
सुनवाई खत्म होने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के अलग-अलग हाईकोर्ट में CAA के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर कोई भी आदेश जारी करने पर रोक लगा दी है.
दिसंबर महीने में शीर्ष अदालत ने केंद्र को नोटिस जारी किया। अदालत ने जनवरी में कानून के खिलाफ एक जरूरी सुनवाई से इनकार कर दिया था, और कहा था कि “देश कठिन समय से गुजर रहा है।” CJI ने कहा, “अदालत का काम एक कानून की वैधता निर्धारित करना है और इसे संवैधानिक घोषित नहीं करना है।”
Comments
Post a Comment