आंगनबाड़ी केन्द्र खुद कुपोषण का शिकार

बलरामपुर से पवन कुमार चतुर्वेदी की रिपोर्ट
बलरामपुर: प्रदेश के ज्यादातर आंगनबाड़ी केंद्र कागजों पर ही ज्यादा चलते नजर आते हैं। अच्छे खासे पंजीकरण के बावजूद आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चे नहीं दिखते हैं। बलरामपुर जिले के बेलई बुजुर्ग आंगनबाड़ी केंद्र भी ऐसी ही हालत है।

जिले के माथे पर कुपोषण का कलंक लगने के बाद भी जिम्मेदार अफसरों की कार्यशैली सुधरने का नाम नहीं ले रही है। नौनिहालों को पूरक पोषाहार उपलब्ध कराकर कुपोषण दूर करने का जिम्मा संभाल रहे आंगनबाड़ी केंद्रों को खुद पोषण की दरकार है। बावजूद इसके अफसर धरातल पर उतरने के बजाय कागजों में कुपोषण दूर कर रहे हैं।

नीति आयोग की रिपोर्ट में जिले के माथे पर कुपोषण का कलंक लग चुका है, फिर भी आंगनबाड़ी केंद्रों पर पोषाहार वितरण में धांधली कम नहीं हुई। अधिकांश जगह नन्हे-मुन्नों, गर्भवती व धात्री महिलाओं को बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग से मिलने वाला पोषाहार भी नसीब नहीं होता।

विकास खंड श्रीदत्तगंज में सैकड़ों की संख्या में आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं। क्षेत्र के बेलई बुजुर्ग गांव में करीब एक दशक पूर्व आंगनबाड़ी केंद्र बनवाया गया था, लेकिन अब तक यहां कोई कर्मचारी नहीं आया। जिससे भवन संचालित हुए बिना ही रखरखाव के अभाव में जर्जर हो गया। भवन का शौचालय झाड़ियों में छुप गया है। दरवाजा टूटा हुआ है। जिससे यह भवन निष्प्रयोज्य साबित हो रहा है। ये आंगनबाड़ी केंद्र तो महज बानगी भर हैं। क्षेत्र में लगभग सभी आंगनबाड़ी केंद्रों का कमोवेश यही हाल है। जिससे नौनिहालों को इसका लाभ नसीब नहीं हो पा रहा है।

जिले में सैकड़ों आंगनबाड़ी केन्द्र हैं, जिनके सुचारू रूप से संचालन के लिए हर केन्द्र पर एक मुख्य कार्यकत्री और एक सहायिका तैनात की गई है। इनकी निगरानी के लिए सुपरवाइजर तैनात हैं। सुपरवाइजर को निर्देशित करने के लिए हर ब्लॉक में एक सीडीपीओ है और इस सम्पूर्ण कार्यक्रम की देख-रेख जिला कार्यक्रम अधिकारी करता है पर बावजूद इसके गाँवों में बने अधिकांश केंद्र या तो बंद मिलते हैं या जो खुले होते हैं, उसमें एक्का-दुक्का बच्चे आते हैं।

महिला एवं बाल विकास विभाग के मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक आंगनबाड़ी केंद्रों की मदद से प्रदेश में कुल 821 विकास खण्डों के अंतर्गत आने वाले गाँवों को लाभ पहुंचाया जा रहा है। इसके तहत सरकार एक लाख 53 हज़ार आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों को बांटे जाने वाले पोषाहार पर प्रतिवर्ष 7000 करोड़ रुपए खर्च कर रही है पर इसके बावजूद केंद्र पर बच्चों की संख्या कम मिल रही है।
उत्तर प्रदेश में बाल विकास और पुष्टाहार परियोजना के तहत चल रहे आंगनबाड़ी प्रोग्राम के लिए प्रदेश भर में क़रीब 2.50 लाख आंगनबाड़ी खोले गए हैं, जिसमें आने वाले बच्चों को रोज़ाना पुष्टाहार जैसे मूंग की खिचड़ी, अरहर की खिचड़ी, पोहा-हलवा या दलिया दिया जाना अनिवार्य है। इसके लिए आंगनबाड़ी चलाने वाले को हर महीने 3,000 रुपए भी मिलते हैं, पर इसके बावजूद आंगनबाड़ी कार्यकत्रियां अपनी ज़िम्मेदारियों से बच रही हैं।

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