गांवो को जानिये पार्ट-1 ~पटकनिया

पटकनिया गाजीपुर जिला मुख्यालय से करीब 15 किमी की दूरी पर बसा-बसाया गया है। यह जमानिया तहसील के रेवतीपुर ब्लाक और सुहवल न्याय पंचायत का प्रमुख गांव है। इस गांव का इतिहास करीब 250 साल पुराना है। इसके बसावट को देखकर पता लगाया जा सकता है कि यहां लोग जैसे-जैसे बाहर से आते गए वैसे ही बसते चले गए हैं। यहां भिन्न जाति के लोगों को भी एक ही टोला में पा सकते हैं। यहां अधिकांश आबादी बाहर से आकर बसी है।
जानकारों का कहना है कि अपना गांव सुहवल का एक डेरा हुआ करता था। जो आगे चलकर पटकनिया मौजा के नाम से जाना गया। गांव की सीमा पूरब में रेवतीपुर गांव से कटकर बने कल्याणपुर गांव से लगती है, पश्चिम में युवराजपुर, दक्षिण में अररिया व गौरा और सुदूर उत्तर में गंगा नदी हैं।

पटकनिया कभी गाजीपुर लोकसभा और दिलदारनगर विधानसभा का प्रभावी गांव बनकर उभरा था।यह गांव जिले और प्रदेश स्तर के नेताओं के निगाह के केंद्र में रहता था। नये परिसीमन के बाद इस गांव की पहचान बगल के जिले बलिया - लोकसभा का एक छोर पर बसे अंतिम गांव और मुहम्मदाबाद विधानसभा का उस पार बसा अंतिम गांव के तौर पर हो गया है। जबकि पश्चिम में डेढ किमी दूर युवराजपुर आज भी गाजीपुर लोकसभा और जंगीपुर विधानसभा के लिए महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु बना हुआ है। वर्तमान में अपने गांव में 5000 से ज्यादा मतदाता होने के बावजूद भी सभी राजनीतिक दलों के लिए अछूत बन गया है। इसलिए यहां विकास कोसो दूर होता जा रहा है। यह सभी के लिए सोचनिय विषय है।

भौगोलिक तौर पर देखें तो अपना गांव गंगा के बहने के स्थान परिवर्तन और नदी द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी के भू-भाग पर बसा हुआ है। कभी यह कुश, राढ़ी, सरपत (पतलो), बबूल और मदार का घना जंगली सा इलाका था। यहां बसने वाले हमारे पूर्वज इन जंगलों को साफ किये खेत बनाएं, घर बनाए और डेरा बनाए। आज यह पूरा क्षेत्र पटकनिया खास और गंग-बरार पटकनिया जदी के नाम से कागजों में दर्ज है। जिसमें पटकनिया खास का चकबंदी हुआ है।
अपने गांव के नामकरण को लेकर कई बातें हैं।

यह सुहवल गांव सभा का पटकनिया मौजा था। वहीं पटकनिया नाम के पीछे लोग अपना ठोस तर्क देते हैं कि अपना गांव शुरू से ही पहलवानों का गांव रहा है। और, जो भी अपने को बड़ा पहलवान समझता था पटकनिया में पटकनी पाकर जाता था। एक समय ऐसा बताया जाता है कि गांव के हर टोले-मुहल्ले में अखाड़ा हुआ करता था। जहां, क्या बुजुर्ग क्या नौजवान सब पाठा थे। इस गांव की एक खासियत थी कि पहलवानी के चक्कर में हर एक परिवार से एक -दो बांड़ (बिना ब्याह) रह जाया करते थे। जिनको खलीफा, मलिकार और मालिक उपनाम दिया जाता था।

पहलवानी का नाम लेते ही अपने गांव के नामी पहलवानों की लंबी फेहरिस्त आंखों के सामने आ जाती है । उनमें स्व. श्याम लाल सिंह (दादा), स्व. गिरिजा सिंह (दादा), स्व. रामाशंकर सिंह, स्व. मंगला सिंह, स्व. कुंवर सिंह, स्व. बहसु सिंह, स्व. रघुनाथ सिंह, स्व. मुनेसर यादव, स्व. जयराम चौधरी और श्री उदयभान सिंह का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।

जब बात स्वतंत्रता आंदोलन का आए तो उसमें भी यह गांव जन-धन की हानि के साथ बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। स्व. वंशनारायण मिश्र और स्व. बाबू अमर सिंह की अगुवाई में क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन गांव में हुआ था। उसी दरम्यान 'भारत छोडो़ आंदोलन ' 1942 में अंग्रेजी फौज द्वारा गांव के खेत, खलिहान और मकानों को जला दिया गया। महीनों अंग्रेज़ी हुकूमत ने गांव के लोगों को प्रताड़ित किया था और लोगों को घर-द्वार छोड़कर गांव के सिवान और अन्य इलाकों में कई महीनों तक छिपना पड़ा था।

अंग्रेज सैनिक यहां महीनों-महीनों तक डेरा डालकर रही थी और क्रांतिकारियों को खोजती रही।
स्व. वंशनारायण मिश्र और स्व. अमर बाबू स्वतंत्र भारत में कांग्रेस के अच्छे नेताओं के रुप में जाने-पहचाने गये।
यह गांव अंग्रेजों के समय में मालगुजारी वसूलने के लिए कई जमींदारों के अधीन रहा। इसमें प्रमुख रूप से जो नाम चर्चित हुए वे - युसूफपुर खड़बा के एक बाबू साहब जिनका परिवार गाजीपुर के रीगल टाकिज से ताल्लुक रखता था, दत्ता परिवार (बंगाली), स्व. कांता सिंह और स्व. पशुपति सिंह थे। और,  गांव के एक कायस्थ परिवार से राम नारायण लाल कारिंदा हुआ करते थे। उस समय इनकी खेती सैकड़ो बीघे से ज्यादा में हुआ करती थी।

गांव के बड़े खेतिहरों में स्व. खीरु सिंह का भी नाम हुआ करता था। अपने गांव में एक कहावत प्रचलित है कि - नरवन में नीरु रा , पटकनिया में खीरु रा और सीताब दीयर में गरिबा रा। ये सब लोग अपने क्षेत्र के बड़े कास्तकारों में थे।
अंग्रेज़ी शासन में भी शिक्षा के क्षेत्र में अपने गांव के लोगों द्वारा भगीरथ प्रयास किया गया। स्व. जगनारायण राय और स्व. जगरनाथ सिंह मास्टर साहब जैसे लोगों ने गांव के लोगों को शिक्षित करने का अलक जगाया था।

समयोपरांत अपने गांव के श्री सुभाष तिवारी और श्री अभी नारायण सिंह कई लोगों के प्रयास से विद्यालय स्थापित किये गये। वर्तमान में श्री धनराज राय, श्री अच्छे यादव, श्री सुनिल यादव द्वारा विद्यालय संचालित किया जा रहा है। जब शिक्षा की बात होती है तो गांव के सगीना राम (वकील) का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। जो पढाई के साथ -साथ गांव के खिलाड़ियों को जरसी और खेल का सामान मुहैया कराते थे।

अपने गांव में दो सरकारी प्राथमिक पाठशाला और एक पूर्व माध्यमिक विद्यालय भी संचालित हो रहा है। साथ ही अपने गांव से करीब ढाई सौ बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। जबकि उच्च शिक्षा और बालिका शिक्षा के लिए अपना गांव अभी भी तरस रहा है।
खेल-कूद कभी अपने गांव की एक पहचान हुआ करती थी। जब पटकनिया की टीम फुटबॉल मैदान में उतरती थी लोगों की निगाहें उन पर ठहर सी जाती थी। फुटबॉल में अपना गांव जिला चैंपियन की श्रेणी में स्थान रखता था ।

बता दें कि कर्नल संभू सिंह, स्व. मेजर बृजराज तिवारी , कर्नल लल्लन तिवारी, कैप्टन सुरेंद्र बहादुर राय और कर्नल मोतिलाल राय अपने गांव की मिट्टी में पैदा हुए।
वहीं यहां के खिलाड़ियों में श्री चेतनारायण सिंह, श्री लक्ष्मण सिंह, श्री साधु सिंह, श्री विजयमल यादव, श्री चुन्नु मिश्र और वर्तमान प्रधानपति श्री रविंद्र यादव हुआ करते थे। आज के समय में अपने गांव में खेल और उसकी व्यवस्था को लेकर क्या स्थिति है, किसी से छिपा नहीं है।

किसी जमाने में इसी खेल के बल पर सेना, रेलवे और पुलिस में सैकड़ों लोग नौकरियां पाये थे।
देश में पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद अभी तक कई पंचायती सरकारें बन चुकी हैं। अपने गांव के पहले प्रधान स्व. अमर सिंह बने थे। उसके बाद स्व. ह्रदय नारायण सिंह, स्व. मनोहर मिश्र, स्व. घनश्याम सिंह, स्व. गुरजू यादव (अल्पकार्यकाल), देवांती देवी (अल्पकार्यकाल), श्री तेजू सिंह, उर्मिला देवी (स्व. रामध्यान यादव), श्रीमती भगमनिया देवी (श्री अवधेश यादव) और वर्तमान में श्रीमती जानकी देवी (श्री रविंद्र यादव) प्रधान बनीं हैं।

सभी प्रधानों ने स्थिति और परिस्थिति के हिसाब से गांव के प्रतिनिधि के तौर पर विकास कार्य कराए और वर्तमान प्रधान भी अपने सामर्थ्य का परिचय दे रहे हैं। आजादी के बाद गांव में जो विकास कार्य होना चाहिए था वैसा अभी तक हो नहीं पाया है। इस पर गांव के नवयुवकों को चेतना चाहिए। और गांव की जो पहचान दबी और छिपी है उसको उभारकर जिला, प्रदेश और देश के स्तर पर ले जाने का प्रयास करना चाहिए । जो हमारे पूर्वजों ने अपने समय में हर क्षेत्र में एक स्तर तक किया है। इसके लिए गांव के ही इतिहास में झांकना होगा जहां से सबको गांव को आगे बढ़ाने की सोंच मिलेगी। जाति, धर्म, रंग, गरीबी, अमीरी, शिक्षित, अशिक्षित का भेद मिटाकर सबको एक नजर से देखना होगा। सोंच में योग्य और जरुरत मंद को ज्यादा से ज्यादा अवसर और साधन मुहैया कराने की दृष्टि होनी चाहिए। तभी जाकर लोग अपने लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर दे पाएंगे।

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अंकित सिंह दादा पत्रकार।

नोट- यदि आप भी अपने गांव के बारे में कुछ इतिहास और वर्तमान के बारे में लोगों को बताना चाहते हैं तो हमें भेजे हम उसे यहां जगह देंगे।भेजने के लिए ईमेल करें thesurgicalnews@gmail.com पर या व्हाट्सएप्प करें 8318136664

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