क्रिकेट: जयसिम्हा, मनमोहक व्यक्तित्व - वीर विनोद छाबड़ा



एम.एल.जयसिम्हा उर्फ़ जय। साठ के सालों में वो जाना-पहचाना नाम रहे। 3 मार्च 1939 को जन्मे इस हैदराबादी ने यों तो 39 टेस्ट में लगभग 31 की औसत से 3 शतकों के साथ मात्र 2056 रन ही बनाये हैं जो कहीं से गर्व कर करने लायक नहीं है, लेकिन इसके बावजूद भी उनका जलवा रहा। उनके मैदान में उतरते ही दर्शक ख़ुशी से झूम उठते थे। स्लिम बॉडी, गले में रुमाल, बाँहों तक चढ़ी सिल्क शर्ट और ऊंचा कॉलर यानी कुल मिलाकर कर मनमोहक व्यक्तित्व। उस समय भारत में जुर्म मानी गयी रिवर्स स्वीप शॉट सबसे पहले जय ने ही खेली। प्लेइंग एलेवेन में न होने के बावजूद कप्तान को भी सलाह देने से कभी गुरेज़ नहीं किया। इस मामले में 1970-71 के पोर्ट ऑफ़ स्पेन की वेस्ट इंडीज़ पर उस पहली ऐतिहासिक जीत को याद किया जाता है जब वो कप्तान अजीत वाडेकर को बहुमूल्य सलाह देते दिखे। इसी सीरीज़ के अंतिम टेस्ट की दूसरी पारी में उन्होंने बनाये तो मात्र 23 रन, लेकिन सुनील गावस्कर (220) के साथ एक घंटे से ज़्यादा खड़े रह कर 81 रन की महत्वपूर्ण पार्टनरशिप में हिस्सा लिया जिससे मैच भारत के पक्ष में आते-आते बचा।
गावस्कर के जीवन में जय का बहुत महत्व रहा। इसका अहसास तब हुआ जब उनकी 'Sunny Days' की प्रस्तावना जय ने लिखी। गावस्कर की अगली पुस्तक 'Idols' में जय भी एक आदर्श बने। जय की पुस्तक 'My Ways' की प्रस्तावना गावस्कर ने लिखी। बात यहीं पर ख़त्म नहीं होती। गावस्कर ने अपने पुत्र के नाम में अपने तीन आदर्श (रोहन कन्हाई, जयसिम्हा और विश्वनाथ) जोड़े, रोहन जयविश्व गावस्कर।
जय का डेब्यू लॉर्ड्स (1959) में इंग्लैंड के विरुद्ध हुआ जो बहुत ख़राब रहा, दोनों परियों में मात्र 8 रन ही बने। लेकिन उसी साल उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध कलकत्ता में एक विचित्र रिकॉर्ड अपने नाम बनाया, उन्होंने टेस्ट के पांचों दिन बैटिंग की। पहले दिन खेल समाप्ति पर उनका स्कोर रहा 2 रन नॉटआउट। दूसरे दिन वो 20 पर आउट हुए। तीसरे दिन दूसरी पारी में वो शाम को आये और 0 पर नॉटआउट रहे। चौथे दिन दिन भर क्रीज़ पर डटे रह कर 59 पर नॉटआउट गए। पांचवें दिन वो 74 रन पर आउट हो गए। इस विचित्र रिकॉर्ड की बराबरी कालांतर में कई बैट्समैन ने की।
स्लो बैटिंग का भी एक नशा है। बाज़ मौके पर दर्शक भी आनंदित होता है। 1960-61 में पाकिस्तान के विरुद्ध कानपुर टेस्ट में जय क्रीज़ पर 505 मिनट तक रहे, मगर दुर्भाग्य से 99 पर रन आउट हो गए। आउट ऑफ़ फॉर्म के कारण वो कई बार टीम से बाहर रहे। 1967-68 में भी ऑस्ट्रेलिया टूर के लिए उन्हें नहीं चुना गया। लेकिन चोटिल भगवत चंद्रशेखर के प्रतिस्थापन के तौर पर उन्हें रवाना किया गया। कई फ़्लाइट बदलते हुए वो टेस्ट शुरू होने के ऐन पहले ब्रिस्बेन पहुंचे। नेट प्रैक्टिस का कोई टाइम नहीं मिला, बैट लेकर सीधा क्रीज़ पर। पहली पारी में 74 और दूसरी में 101 रन बनाये। लेकिन उनका साहसिक प्रयास व्यर्थ गया, जब टीम जीत के लक्ष्य 395 से मात्र 39 रन से चूक गयी। जय के नाम तीन टेस्ट शतक हैं और ये विचित्र संयोग है कि तीनों ही सीरीज़ के तीसरे टेस्ट में बने। जय नेशनल टीम सिलेक्टर भी रहे। 1977-78 गयी पाकिस्तान टीम का चयन उन्होंने ही किया था, जिसमें उनके कहने पर ही कपिल देव को शामिल किया गया था।
जय का अंत बहुत दर्दनाक रहा। मात्र 60 साल की उम्र में 6 जुलाई 1999 को कैंसर के चलते वो इतिहास का हिस्सा हो गए।

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