रेहाना, मुफ़्त हुईं बदनाम - वीर विनोद छाबड़ा


चालीस और पचास के सालों में एक प्रोड्यूसर-डायरेक्टर-लेखक होते थे प्यारे लाल संतोषी, जो आज के दौर के मशहूर डायरेक्टर राज कुमार संतोषी के पिता। वो कॉमेडी फ़िल्मों और उनके अजीबो-गरीब टाईटल्स के लिए विख्यात थे। उन्होंने 1952 में एक फ़िल्म बनाई थी, 'शिन शिनाकी बूबला बू'. इसकी हीरोइन थी, रेहाना। खूबसूरत और आकर्षक। संतोषी उस पर मुग्ध हो गए। मगर रेहाना उन्हें घास तक नहीं डालती थी। मोहब्बत ने कुछ ऐसा उछाल मारा कि एक दिन उन्होंने फ़ैसला कर लिया, इक घर बनाऊंगा तेरे घर के सामने। और वो रेहाना के द्वार पर रात भर बैठे रहे। मगर रेहाना न पसीजी। मायूस संतोषी ने रेहाना की याद में गाना लिखा - तुम क्या जानो तुम्हारी याद में हम कितना रोये...और ये गाना फ़िल्म में भी डाला गया, लता जी ने गाया था। ये लता जी की बेहतरीन ठुमरी बताई जाती है। अब ये एक अलग कहानी है कि शिन शिनाकी...सेंसर से पास हो गयी मगर तत्कालीन मिनिस्ट्री ऑफ़ इनफार्मेशन ने इस पर बैन लगा दिया ये कहते हुए कि हीरोइन क्राइम को ग्लोरिफ़ाई करती है। हालांकि बाद में इसे रिलीज़ की इजाज़त मिल गयी, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर पिट गयी।
रेहाना ने लखनऊ में लीजेंड शंभू महाराज से पांच साल की उम्र में कथक सीखा था और फिर कज्जन बाई की मंडली में सम्मिलित होकर देश-विदेश में अपने प्रोग्राम पेश किये। इसी मंडली संग वो सपनों की नगरी बंबई पहुंचीं, जहाँ उन्हें के.एल.सहगल-सुरैया की 'तदबीर' में एक छोटा सा नृत्य पेश करने का चांस मिला। बस इसी से रेहाना की तक़दीर बन गयी। पी.एल.संतोषी ने प्रभात के लिए 'हम एक हैं' ने उन्हें देवानंद के अपोज़िट लिया, दोनों की पहली फ़िल्म। कालांतर में संतोषी और रेहाना का साथ कई फ़िल्मों में रहा, शहनाई, खिड़की, सरगम, छम-छमा-छम, शिन-शिनाकी-बूबला-बू वगैरह।
'शहनाई' (1947, हीरो-किशोर कुमार) के साथ रेहाना का बेस्ट टाईम शुरू हुआ चार साल तक ही चला। इस बीच उन्होंने साजन, एक्ट्रेस, सुनहरे दिन, सरगम, दिलरुबा, निर्दोष, सूरजमुखी, शेखर, अदा, सगाई आदि दर्जन भर हिट फ़िल्में की, जिनमें उनके हीरो अशोक कुमार, श्याम, प्रेम अदीब, राजकपूर, देवानंद और  किशोर कुमार रहे। 1952 से उनके कैरीयर का पतन शुरू हो गया। शिन शिनाकी... का ज़िक तो ऊपर हो ही चुका है। रंगीली, छम-छमा-छम, हज़ार रातें, सम्राट आदि भी लगातार फ्लॉप हो गयीं।
अलावा इसके रेहाना के साथ कई विवाद भी जुड़े। सुनहरे दिन (1949) में निगार सुल्ताना के साथ लेस्बियन रिश्तों को लेकर बहुत चर्चा हुई। दिलरुबा(1950) में उन्होंने बाथिंग सीन दिया। उस दौर की कथित हाई सोसाइटी इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थी। नतीजा, वो फ्रंट बेंचर की पहली पसंद बन गयीं। उन्हें 'झटका क्वीन' का ख़िताब मिला। फिल्म क्रिटिक्स तो रेहाना के पीछे पड़े ही रहते थे। रंगीली (1952) के रिव्यु में एक क्रिटिक ने लिखा, जब फिल्मकार को कोई सब्जेक्ट नहीं मिलता तो वो रेहाना को कास्ट करता है...।
रेहाना बहुत मायूस हो गयीं। कोई साहिल मिलता न देख वो पाकिस्तान चली गयीं, इस उम्मीद में कि शायद वहां किस्मत का पिटारा खुल जाए। मगर उनका मुकद्दर ख़राब ही रहा। प्रोड्यूसर इक़बाल शहज़ाद से शादी भी ज़्यादा दिन नहीं चली। फिर बिज़नेसमैन साबिर अहमद से शादी की।  1931 में जन्मीं बताई गयीं रेहाना अब कहाँ और किस हालात में हैं? कोई ख़बर नहीं है।

Comments