आदिवासियों, वनाश्रितों, दलितों व गरीबों पर आरएसएस-भाजपा द्वारा जारी दमन का प्रतिकार करें- अखिलेन्द्र



चकिया (चंदौली): राबर्ट्सगंज उत्तर प्रदेश लोकसभा का चुनाव आदिवासियों, दलितों, वनाश्रितों और गरीबों को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसकी भाजपा सरकार के हमलों से बचाने और प्रतिकार करने के लिए लड़ा जा रहा है।उक्त बातें आज राबर्ट्सगंज लोकसभा से स्वराज इंडिया समर्थित प्रत्याशी पुलिस विभाग के पूर्व आई जी एस आर दारापुरी के समर्थन में स्वराज अभियान के राष्ट्रीय कार्य समिति के सदस्य अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा।

उन्होंने कहा कि  राबर्ट्सगंज क्षेत्र का बड़ा बुरा हाल है  वनाधिकार कानून के तहत सोनभद्र में 64 हजार लोगों ने दावा जमा किया था जिसमें से 53 हजार लोगों का और चकिया, नौगढ़ में 14 हजार में 13 हजार लोगों का दावा बिना सुनवाई का अवसर दिए ही खारिज कर दिया गया और अब उन्हें वनों से बेदखल किया जा रहा है। यहां फैक्ट्रियों में 20- 20 साल से काम करने के बाद भी ठेका मजदूरों का नियमितीकरण नहीं होता है। पांच से सात हजार रूपए में किसी तरह वह अपना जीवन बसर करते है जिसमें भी अनपरा और ओबरा जैसी बिजली परियोजनाओं में छः-छः माह तक मजदूरी का भुगतान ही नहीं किया जाता। पत्थर तोड़ते और काटते हुए लोग यहां आपको मिल जाएंगे जिनकी मजदूरी बेहद कम है।

यहां फैक्ट्रियों का गंदा पानी नदियों में जाता है इस गंदे पानी को पीने से हर साल गर्मियों में बच्चे मरते है, उनके लिए किसी दवा की तक की व्यवस्था नहीं है। पिछले वर्षों से यहां हम लोग संघर्ष चला रहे हैं जिसकी वजह से कुछ पानी वगैरह में सुधार की व्यवस्था की गई है लेकिन प्रदूषण अभी भी जारी है। यहां अवैध खनन प्रशासन और शासन के संरक्षण में चलता है यहां से वीआईपी वसूली जाती है और प्रदेश में यह अवैध खनन का सबसे कुख्यात जिला है। इस दलित, आदिवासी बहुल्य क्षेत्र को नीति आयोग तक ने देश के सर्वाधिक पिछड़े क्षेत्रों में माना है बावजूद इसके इस क्षेत्र के विकास में किसी सरकार की, किसी जनप्रतिनिधि की रुचि नहीं रहती है। पूरा क्षेत्र चारागाह बना हुआ है और विकास मदों की चैतरफा लूट हो रही है। यहां की खेती किसानी बर्बाद है, किसानों को अपना पैदा किया हुआ टमाटर फेकंना पड़ता है, सिचांई के लिए पानी यहां तक की पीने के लिए पानी की भी समुचित व्यवस्था नहीं है। आज भी लोग बरसाती नालों, चुआड़ से पानी पीने के लिए मजबूर है वह भी गर्मी के मौसम में सूख जाते है।

आपको यह भी बता दें यहां बहुत सारी आदिवासी जातियां ऐसी हैं जिन्हें आदिवासी का दर्जा ही नहीं मिला आप जानते हैं आदिवासियों में मशहूर जाति कोल है, अन्य राज्यों में कोल जनजाति है लेकिन यहां के कोल को अभी भी अनुसूचित जनजाति की जगह अनुसूचित जाति के बतौर रखा गया है। एक धांगर जाति है सरकार के सहयोग से आरएसएस के लोगों ने हेराफेरी करके धांगर जो मूलतः अनुसूचित जनजाति की कैटेगरी में आते हैं जिन्हें राहत के लिए कम से कम अनुसूचित जाति माना जाता था, उनके बच्चों को एससी के सर्टिफिकेट से भी वंचित कर दिया। यहां हमने यह भी देखा है कि बड़े पैमाने पर बेरोजगारी है जो मनरेगा में काम हो रहा था वह पूरी तौर पर ठप कर दिया गया। लोग बेसहारा छोड़ दिए गए हैं। यहां के लोगों की अपेक्षा थी कि भाजपा और आरएसएस के खिलाफ अन्य दल बोलेंगे लेकिन बोलने को कौन कहे वह लोग तो आरएसएस और भाजपा के दमन अभियान का ही समर्थन करते है।

ऐसी परिस्थिति में आरएसएस व भाजपा सरकार द्वारा जो सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक हमले आदिवासियों, दलितो, वन आश्रितों और गरीबों के ऊपर हो रहे हैं उनका प्रतिकार करने और उनकी आवाज को लोकसभा में उठाने के लिए, उनकी पहचान को बुलंद करने के लिए हमारे पास चुनाव में उतरने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। इसलिए यहां की तात्कालिक जरूरतों को देखते हुए यहां के लोगों ने फैसला किया है कि राष्ट्रीयस्तर पर नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले पूर्व आई0 जी0 एस0 आर0 दारापुरी साहब को यहां से चुनाव लड़ाया जाए। दारापुरी जी आईपीएस अधिकारी रहे है और सरकारी नौकरी में रहते हुए भी उनकी जनपक्षधरता रही और नौकरी से रिटायर होने के बाद तो देश में कहीं भी दमन हुआ हो दारापुरी जी उसके विरूद्ध खड़े रहे है।

हमारी आपसे अपील है कि आइपीएफ आदिवासी वनवासी महासभा जो स्वराज अभियानऔर स्वराज इंडियासे जुड़ा हुआ है और गरीबों के पक्ष में हमेशा आवाज उठाता रहता है, का सहयोग करें, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के विरुद्ध चल रही लड़ाई में मजबूती प्रदान करें। संघी हमले के खिलाफ यह चुनाव दलितों, आदिवासियों और गरीबों का प्रतिवाद संगठित कर सके तो समझिए हमारी लड़ाई सफल रही और हमें उम्मीद है कि आप हर तरह से हमें सहयोग करके इस लड़ाई को आगे बढ़ाएंगे।उन्होंने नौगढ़ के सम्बन्ध में यह कहा कि हम यहाँ के विकास व आदिवासियों के दमन के सवालों पर हर समय लड़ते रहते हैं बन्धे बन्धीयों होने के बाद भी यंहा फसल पानी के अभाव में सुख जातीं है इस सवाल पर हम लगातार लड़ते हैं।

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