गुत्थी बन गया प्रधानमंत्री को दिया गया पुरस्कार:सुधीर जैन (वरिष्ठ पत्रकार)



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस हफ्ते एक पुरस्कार मिला। इसका नाम है फिलिप कोटलर प्रेजिडॅन्शिअल अवार्ड। अभी इस पुरस्कार का नाम दुनिया में बहुत चर्चित नहीं है। यह अभी ही सुनने में आया है क्योंकि इस पुरस्कार का श्रीगणेश ही भारत से हो रहा है। इस पुरस्कार को देने वाले संगठन को भी ज्यादा नहीं सुना गया। दरअसल यह संगठन एक ग्लोबल मार्केटिंग ग्रुप की एक तात्कालिक भारतीय शाखा है। इस भारतीय शाखा का नाम है वर्ल्ड मार्केटिंग समिट इंडिया। इस अस्थायी शाखा ने पिछले महीने ही एक सम्मेलन दिल्ली में करवाया था। कहा जाता है कि इस सम्मेलन का खर्चा भारत की सरकारी गैस कंपनी गेल ने उठाया था। मीडिया रिपोर्टो के मुताबिक आयोजन के खर्चे के लिए काफी कुछ मदद बाबा रामदेव की पतंजलि और कुछ दूसरी निजी कंपनियों से भी मिली थी।
पुरस्कार देने वाले कथित वैश्विक संगठन की उपज इसी दशक की है। इसका नाम है ग्लोबल मार्केटिंग ग्र ुप। जो आधी अधूरी जानकारी इस समय मिल पा रही है उसके मुताबिक टोरंटो इसका मुख्यालय बनाया गया था। कहते हैं कि यह संगठन सन 2011 के बाद से लेकर अब तक बांग्लादेश, मलेशिया और जापान जैसे देशों में अपने कुछ सम्मेलन कर चुका है। लेकिन पिछले महीने दिसंबर में इस संगठन के सम्मेलन अचानक कई देशों में आयोजित किए गए। भारत उनमें एक था। बहुत संभव है कि नई दिल्ली में आयोजित इसी ग्लोबल मार्केटिंग समिट इंडिया में एक नया पुरस्कार शुरू करने की योजना बनी हो और तुरत फुरत योजना को अमली जामा भी पहना दिया गया हो।
बहरहाल इसी हफ्ते यह पुरस्कार घोषित हुआ फौरन ही प्रधानमंत्री के निवास पर जाकर उन्हें प्रदान भी कर दिया गया। खैर यह तो थी पुरस्कार देने वाले पितृ संगठन और उसकी भारतीय इकाई के बारे में संक्षेप में जानकारी। लेकिन प्रधानमंत्री को इस पुरस्कार को दिए जाने के बाद मीडिया तफ्सील से यह जानने में जुट गया है कि पुरस्कार देने वाली इस संस्था की मौजूदा हैसियत क्या है? इसके पदाधिकारी वगैरह कौन हैं? खासतौर पर भारतीय शाखा में कौन लोग हैं। उनकी पृष्ठभूमि क्या है? वगैरह वगैरह। पुरस्कार के भारतीय आयोजकों से संपर्क करने में मीडिया को ज़रा मुश्किल आ रही है। वैसे भी यह जानना पत्रकारीय शोध का एक लंबा काम है। खैर यह पता आगे होता रहेगा। लेकिन फिलहाल यह जाना जा सकता है कि आखिर ये फिलिप कोटलर कौन हैं जिनके नाम पर यह पुरस्कार बनाया गया है।

कौन हैं कोटलर?
सतासी साल के फिलिप कोटलर मशहूर मार्केंटिंग गुरु हैं। दुनियाभर के प्रबंधन स्कूलों में उनकी किताबें पढ़ने के सुझाव दिए जाते हैं। माकेंटिंग प्रबंधन पर तमाम किताबों के वे लेखक हैं। भारत में प्रबंधन प्रौद्योगिकी का कोर्स करने वाले बीसियों हजार छात्र मार्केटिंग सीखते समय उनके नाम से रूबरू होते हैं। लेकिन कोटलर के बारे में इतनाभर जानना काफी नहीं है।
कोटलर उन पहले वि़द्वानों में हैं जिन्होंने मार्केटिंग को ज्ञान विज्ञान के एक विषय के रूप् में स्वतंत्र पहचान दिलाई। विपणन या खरीद फरोख्त के इस क्षेत्र को उन्होंने ही व्यापार के सीमित क्षेत्र से बाहर निकालकर राजनीति और समाज के क्षेत्र से भी जोड़ा। इस तरह से कोटलर ने मार्केटिंग को व्यापार और विनिर्माण के एक उत्पाद के अलावा राजनीतिक और सामाजिक उत्पाद की मार्केटिंग के लिए एक यंत्र के तौर पर पेश किया। माकेटिंग क्या है? औद्योगिक उत्पादों के अलावा किन किन चीजों की मार्केटिंग हो सकती है? और मार्केटिंग कौन कौन कर सकता है? इसे उन्होंने नए तरीके से सोच कर बताया। जब उन्होंने यह बताया कि वस्तु और सेवाओं के अलावा और कौन कौन सी आठ चीजें मार्केट हो सकती हैं तो मार्केटिंग का दायरा उद्योग व्यापार की सीमा से बाहर आकर राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र तक फेलने लगा। वस्तु और सेवा के अलावा जिन आठ क्षेत्रों को उन्होंने मार्केटिंग के लायक माना वे हैं प्लेस, परसन, आइडिया, ईवेंट, फिनांशियल प्रॉपर्टीज़, आर्गनाइज़ेशन, इनफॉर्मेशन और इक्सपिरिअंस। बस यहीं से यह सोचना शुरू हुआ कि राजनीतिक या सामाजिक प्रचार अभियानों को एक मार्केटिंग की तरह अंजाम दिया जा सकता है।

कौन करता है मार्केट यानी कौन है मार्केटर?
मार्केट करने वाले को परिभाषित करते हुए कोटलर कहते है कि वह हर कोई व्यक्ति जो अपनी किसी चीज़ या बात का रिस्पॉस यानी प्रत्युत्तर चाहता है वह मार्केटर है। वे बताते हैं कि यह रिस्पॉस- अटेंशन, परचेज,़ वोटए डोनेशन आदि किसी भी रूप् में हो सकता है। यानी सिर्फ वस्तु और सेवा के रूप में उत्पाद बेचने वाले ही खरीददार का रिस्पॉस नहीं चाहते बल्कि राजनेता या सामाजिक कार्यकर्ता भी अपने लिए रिस्पॉस चाहते हैं सो कोटलर ने राजनेताओं को भी मार्केटर साबित किया।
बहरहाल, कोटलर ने अपने अकादमिक कार्य से राजव्यवस्थाओं को संबोधित किया और सरकारों की नीतियों को प्रभावित करने के लिए बहुतेरी नई नई बातें कहीं। गरीबी, बेरोज़गारी, कर्ज़ की समस्या, नागरिकों की आय में असमानता, पर्यावरण के शोषण दोहन की चिंताओं को लेकर वे राजसत्ताओं को अपने सुझाव देते रहे हैं। इसीलिए कोटलर को एक प्रोफेसर और लेखक के अलावा दार्शनिक भी समझा जाता है। कोटलर मार्केटिंग के क्षेत्र के एक ऐसे विद्वान हैं जिन्होंने अपनी हाल ही में प्रकाशित किताब डिमॉक्रेसी इन डिकलाइन यानी नीचे गिरता लोकतंत्र नाम से लिखी है।

                          -सुधीर जैन (वरिष्ठ पत्रकार एवं अर्थशास्त्री?

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