राफेल मुद्दे पर 23फरवरी को होगा लखनऊ में सम्मेलन



राफेल पर पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकार कर लिया गया है। पूरा देश जानता है कि किस तरह मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट तक को गलत जानकारी देते हुए बताया था कि राफेल के संबंध में कैग की रिपोर्ट का परीक्षण संसद की पब्लिक एकाउण्ट कमेटी द्वारा किया जा चुका है और कोई अनियमितता नहीं पाई गई है। बाद में मोदी सरकार द्वारा इसे लिपिकीय त्रुटि बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में नया हलफनामा दाखिल करना पड़ा, जिससे इनकी पोल पूरी तौर पर खुल गई है। लेकिन अभी भी बेशर्मी साथ सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्लीन चिट मिलने की बात संसद में दोहरायी जा रही है, 1 जनवरी के अपने प्रायोजित साक्षात्कार में मोदी जी द्वारा भी इसे दोहराया गया। दरअसल राफेल विमान समझौते में जिस तरह नियमों को ताक पर रख कर अनिल अम्बानी की नव निर्मित कम्पनी जिसके पास रक्षा सौदों का कोई भी अनुभव नहीं था को पब्लिक सेक्टर की प्रतिष्ठित कम्पनी से छीन कर ठेका दिया गया। इससे राष्ट्रीय हित को तो गंभीर नुकसान हुआ ही है बल्कि राष्ट्र की संप्रभुता व राष्ट्रीय सुरक्षा से भी समझौता किया गया। ऐसे में इसकी जेपीसी द्वारा जांच कराना बेहद जरूरी है जिससे सचाई देश की जनता जान सके। बावजूद इसके इतने गंभीर मामले की संयुक्त संसदीय समिति(जेपीसी) से जांच कराने से मोदी सरकार इंकार कर रही है और पूरे देश को गुमराह करने की कोशिश भी लगातार की जा रही है। संप्रभुता व राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े होने के चलते ही इस मुद्दे पर पूरे देश में आम जनमानस उद्धेलित है। राफेल मुद्दे पर 23 फरवरी को लखनऊ में सम्मेलन भी आयोजित किया जा रहा है। इस सम्मेलन में स्वराज अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के साथ स्वराज अभियान के राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य अखिलेन्द्र प्रताप भी आएंगे। यह जानकारी हमें अजय राय (स्वराज अभियान व संगठन प्रभारी मजदूर किसान मंच) ने दी है।

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