बलिया लोकसभा 2019: एकतरफ आधा दर्जन दावेदार लेकिन विपक्ष में कौन-कौन और टिकेगा कौन?

लोकसभा बलिया में भाजपा के टिकट पर लड़ने के लिए उम्मीदवारों की लाइन लगी हुई है। पहले मैं एक बात आपको बता दूं कि इस बार जनता वर्तमान सांसद भरत सिंह से पूरी तरह नाखुश दिख रही है। ऐसे में यह खबर आ रही है कि भाजपा से वर्तमान सांसद भरत सिंह का टिकट कटना लगभग तय ही है। लेकिन ऐसा नहीं है कि भाजपा का वोटबैंक कम हो गया है इस लोकसभा सीट के लिए। लेकिन सवाल ये पैदा होता है कि एक टिकट के लिए दावेदारों की इतनी लंबी लाइन लगी हुई है तो टिकट मिलेगा किसे? आइए जानते है किसे मिल सकता है टिकट?


केतकी सिंह
भाजपा की फायर ब्रांड नेता हैं केतकी सिंह। वह इस लोकसभा सीट के लिए भाजपा की एकमात्र महिला दावेदार हैं।


चूंकि केतकी सिंह ने जनसंपर्क में बहुत ही बढ़िया अपना जनता में छबि बना रखी है और अब भी जनसंपर्क साधे हुए हैं। जिससे उन्हें इस सीट के लिए एक प्रबल दावेदार माना जा सकता है। केतकी सिंह को टिकट मिलना इसलिए संभव लग रहा है क्योंकि वह इस वक़्त भाजपा के लिए सबसे ज्यादा चर्चित नेता है इस सीट के लिए। महिला वोटबैंक भी मिलेगा। लेकिन हम आपको बता दें कि वह 2017 में पार्टी से बगावत करके बांसडीह विधानसभा से निर्दलीय चुनाव भी लड़ चुकी है और उसमें वह महज 1579 मतों से अपने प्रतिद्वंदी रामगोविंद चौधरी से हार गई थी। लेकिन उन्हें फिर से महेंद्र नाथ पाण्डेय की उपस्थिति में भाजपा में शामिल कर लिया गया है।


नागेन्द्र पाण्डेय
दूसरे भाजपा के सबसे प्रबल दावेदारों में से है नागेन्द्र नाथ पाण्डेय। अब इनका वोट बैंक इसलिए है क्योंकि यह एक मिलनसार और सभी से मिलते जुलते रहने के कारण इस लोकसभा क्षेत्र में काफी चर्चित है।


चूंकि वह कमल संदेश यात्रा में आईटी सेल के साथ बहुत ही बेहतर ढंग से अपनी प्रस्तुति जनता में दिए साथ ही आईटी सेल के बहुत से लोग उन्हें पसंद करते हैं। सबसे बड़ी बात उनकी ये है कि वह ग्रामीण क्षेत्रों में हमेशा सक्रिय रहते हैं। चूंकि वह ब्राह्मण है इसकी वजह से उनको केंद्र सरकार के सामान्य जाति को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की वजह से सामान्य जाति का अधिकतम वोट मिलेगा। साथ ही ब्राह्मण जनसेवा मंच ने भी उन्हें समर्थन देने का वादा किया है। हालांकि उनका भी इतिहास कुछ केतकी सिंह जैसा ही है। नागेन्द्र पांडेय पहले कांग्रेस के नेता थे और 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ा था लेकिन 2014 में उन्होंने कांग्रेस से स्तीफा दे दिये और भाजपा में शामिल हो गए।


दयाशंकर सिंह
दयाशंकर सिंह भाजपा के इस सीट के लिए दावेदार हो सकते है और इसके लोए कोई विशेष कारण है तो वह हैं उनकी पत्नी स्वाति सिंह।


चूंकि भाजपा के यह नेता उस वक़्त चर्चा में आ गए थे जब उन्होंने ने मायावती पर अभद्र टिप्पड़ी कर दी थी। जिसके बाद स्वाति सिंह ने अभद्रता कर रहे बसपा के खिलाफ जमकर हमला बोला था और अब वो उत्तर प्रदेश सरकार में एक मंत्री हैं। वे एनआरआई, बाढ़ नियंत्रण, कृषि आयात, कृषि विपणन, कृषि, विदेश व्यापार की मन्त्री तथा महिला कल्याण मंत्रालय, परिवार कल्याण, मातृत्व और बाल कल्याण मन्त्रालयों की राज्य मंत्री हैं। हालांकि दयाशंकर सिंह को टिकट मिलने से विपक्षी पार्टियां खुश हो जाएंगी क्योंकि इस सीट पर वह दयाशंकर सिंह के खिलाफ आसानी से मोर्चा खोल सकती हैं।


राम इकबाल सिंह
राम इकबाल सिंह को क्रांतिकारी नेता माना जाता है। वह भाजपा की टिकट से पूर्व विधायक भी रह चुके है।


राम इकबाल सिंह को टिकट मिलने के लिए जो कारण हो सकते हैं उनमें उनका पूर्व विधायक होना जनता में बेहतर पकड़ होना हो सकता है। चूंकि उन्होंने स्वर्गीय कृष्णानन्द राय के शहादत दिवस पर पूरे जनता में घूमते हुवे मुहम्मदाबाद के शहीद पार्क में एक बड़े जन समूह को लेकर पहुंचे थे। जिससे माना जा रहा है कि गाज़ीपुर के सांसद और वर्तमान में रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा काफी खुश नजर आए थे। हो सकता है कि उन्हें इसका लाभ मिले और उन्हें इस सीट पर भाजपा से टिकट मिल जाये।


साकेत सिंह सोनू
साकेत सिंह सोनू एक युवा चेहरा है। यदि भाजपा इस सीट के लिए युवा चेहरा चाहेगी तो सोनू की दावेदारी प्रबल होगी इसमे कोई दो राय नहीं है। मिलनसार स्वभाव के कारण साकेत सिंह युवाओं के काफी चहेते है। वह राष्ट्रीय कार्यक्रमों एवं बैठक विभाग के प्रदेश सह संयोजक के साथ-साथ भाजयुमो के प्रदेश उपाध्यक्ष है।


एक युवा होने के नाते इस सीट पर यदि युवा उम्मीदवार को तव्वजो दी जाएगी तो वह एक अच्छे दावेदार होंगे।भाजपा के रैलियों में हजारो की संख्या में युवाओं के साथ पहुचते है।सैकड़ो युवाओं के भीड़ को लेकर कमल सन्देश यात्रा में चले काफी चर्चाए हुई थी।हालांकि अधिक समय बलिया के बाहर के कार्यक्रमो में  पदों की जिम्मेवारियों का निर्वहन कर रहे है। लेकिन छोटे भाई उनके प्रतिनिधि डीoएन oसिंह लोकसभा में ताबड़तोड़ जनसम्पर्क कर रहे है।युवाओं के खेलकूद ,सांस्कृतिक कार्यक्रमो के साथ जनता के दरवाजे जाकर दुःख सुख में पहुचकर मिलना उनकी मदद करना दिनचर्या सालों से बन गयी है।भाजपा पार्टी के झंडा डंडा के साथ पार्टी के विकास कार्यो को जनसम्पर्क के माध्यम से बखान करते मिल जाते है।


बीएन गुप्ता
बीएन गुप्ता एकमात्र पिछड़ी जाति के ऐसे चेहरे है जो भाजपा की इस सीट के लिए अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं। वह पेशे से एक नेत्र चिकित्सक है और वह ग़ाज़ीपुर के भूतपूर्व मुख्य चिकित्साधिकारी रह चुके हैं।


वह अपने पेशे से ही ग्रमीण क्षेत्रों में समाजसेवा के कार्य मे लगे हुए है और समय समय पर कैम्प लगाकर लोगों के नेत्र परीक्षण एवं निःशुल्क लेंस लगाने का कार्य जारी रखे हुए हैं। हालांकि उनकी पकड़ बीजेपी कार्यकर्ताओं में उतनी नहीं है जितनी अन्य लोगों की है। यफी भाजपा समाजसेवा कर रहे पिछड़े किसी व्यक्ति की तलाश में होगी तो बीएन गुप्ता को टिकट जरूर मिल जाएगा।


अब विपक्ष में कौन हो सकता है?
भाजपा के विपक्ष के रूप में जब हम विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि इस सीट पर सपा-बसपा गठबंधन होने के कारण अभी भी पेंच फस हुआ है। हालांकि अधिकतम लोग मानते है कि नीरज शेखर सपा से इस सीट पर लड़ सकते है वही बहुत लोग यह मान रहे हैं कि अफजाल अंसारी जो कि 2014 में भी लोकसभा सीट के लिए कौमी एकता दल से चुनाव लड़े थे वह इस सीट पर ताल ठोक सकते हैं। खैर आइए देखते है कौन होगा तो क्या हो सकता है।


सपा से नीरज शेखर
नीरज शेखर एक जाना-माना नाम है। वह पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पुत्र है है और वह इस सीट के लिए भाजपा को न सिर्फ टक्कर दे सकते हैं बल्कि हरा भी सकते है। कुछ ही दिन पहले उन्होंने बयान दिया था कि वह इस सीट के लिए दमखम से लड़ेंगे और भाजपा को हटा देंगे।


उन्हीने कहा था कि भाजपा ने बलिया का अपमान किया है। भाजपा ने बलिया में आ रहे पूर्वांचल एक्सप्रेसवे को बलिया नहीं आने दिया जिससे बलिया का विकास रुक गया और इस बार जनता भाजपा को सबक सिखाएगी। नीरज शेखर के पास भाजपा के वोटरों में भी सेंध लगाने की ताकत है क्योंकि एक बड़ा सामान्य जाति का तबका उन्हें समर्थन देता है। ऐसे में अगर उन्हें सपा बसपा टिकट देगी तो गठबंधन की वजह से पिछड़ी, अनुसूचित के साथ अगड़ी जातियों के वोटों से वह फिर से भाजपा को पटखनी दे सकते है। चूंकि पिछले लोकसभा चुनाव में भरत सिंह को 38.18% वोट मिले थे। वहीं नीरज शेखर को 23.38% वोट मिले थे। अब चूंकि कौमी एकता दल का विलय बसपा में हो गया है तो कौमी एकता दल एवं बसपा का पिछला वोट प्रतिशत क्रमशः 17.40% व 15.04 % नीरज शखर में मिला दें तो नीरज शेखर को मिलने वाला वोट प्रतिशत 55.82 % हो जाता है जो भाजपा के पिछली बार के मोदी लहर में 38.18% से 17.64% अधिक हो जाएगा। ऐसे में भाजपा यह सीट बुरी तरह से हार जाएगी।


बसपा के अफजाल अंसारी
बसपा सपा गठबंधन होने के कारण अफजाल अंसारी को टिकट देना ही पड़ेगा चाहे कहीं से भी दिया जाए।


चूंकि यदि उन्हें इस सीट पर टिकट दिया जाएगा तो सपा का एक बड़ा खेमा उनका समर्थन नहीं करेगा और इसकी वजह ये है कि सपा में कलह का जिम्मेदार कौमी एकता दल को ही सपा के कार्यकर्ता अब भी मानते हैं। तो जाहिर है सपा का वोट पूरा तो नहीं ही मिलेगा साथ ही हिन्दू मुस्लिम वोटिंग होने के कारण भी उन्हें अधिकतम हिंदुओं का वोट नहीं मिलेगा। हां बसपा का वोट पूरा उन्हें मिल जाएगा इसमे कोई दो राय नहीं है। हालांकि वह ग़ाज़ीपुर से पागल भी मनोज सिंह को बड़े अंतर से हरा चुके हैं इसलिए पेंच फसा हुआ है कि वह बलिया से टिकट पर लड़ेंगे या फिर ग़ाज़ीपुर से। मेरा मानना है कि यफी वो बलिया से टिकट पर चुनाव में उतरेंगे तो भाजपा आसानी से जीत दर्ज कर लेगी। क्योंकि बहुत समय से वह जानता के मुद्दों को उठाने में नाकाम रहे है और उनका पुराना वोटर ही उनको वोट करेगा नया नहीं।


कांग्रेस से बाबुल सिंह
अब एक और पार्टी की बात करते है हालांकि इसमें कोई दो मत नहीं है कि यह तीसरे नंबर पर ही रहेंगे या हो सकता है यह चौथे नंबर पर भी आ जाये। चूंकि बसपा और सपा ने कांग्रेस को अपने गठबंधन में सिर्फ दो सीटें दी है अमेठी और रायबरेली की। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल ने कहा है कि वह सभी सीटों पर उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ेंगे। चूंकि भाजपा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पर हमलावर रही है और अब तो evm का भी मुद्दा आ गया है। कांग्रेस से दो ही लोग इस सीट से चुनाव लड़ सकते हैं एक जनक कुशवाहा जो इस वक़्त कॉंग्रेस की राजीव गांधी पंचायती राज संगठन के राष्ट्रीय महासचिव हैं वह पहले भी मुहम्मदाबाद विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा में चुनाव लड़ चुके है और हार गए हैं। ऐसे में यदि उन्हें पार्टी टिकट देने चाहेगी तो वह टिकट लेकर अपने सिर पर एक और हर का ठीकरा क्यों फ़ूडवाएँगे?


तो जाहिर है कांग्रेस के एकमात्र दावेदार बचते हैं बाबुल सिंह। बाबुल सिंह एक युवा है लेकिन यहां का अधिकतर युवा कांग्रेस को सपोर्ट नहीं करता है। हां उनको टिकट मिलने पर सिर्फ एक अच्छा संदेश ही जायेगा जनता में कि कांग्रेस युवाओं को टिकट देती है और संभव है कि एक दो बार के बाद वह इस सीट पर भविष्य में जीत जाएं। लेकिन इस बार तो कुछ भी हो जाये वह नहीं जीत पाएंगे। बाबुल सिंह ने 16 जिलो से होती हुई राहुल संदेश यात्रा निकाली थी जिससे राहुल खुश हुए होंगे कि एक युवा चेहरा है और इसकी वजह से जनता उनको तवज्जो दे सकती है। 2014 में कांग्रेस को इसी सीट पर सुधा राय को महज  13501 यानी 1.43% ही वोट मिले थे। ऐसे में यदि कांग्रेस के बाबुल सिंह को दूसरे स्तर पर भी आना है तो बहुत मेहनत करना पड़ेगा। बाबुल सिंह युवा जरूर है लेकिन उनके नजदीकी क्षेत्र के अलावा उनकी पकड़ नहीं है। चूंकि अब पूर्वी उत्तर प्रदेश का जिम्मा प्रियंका गांधी को मिला है तो हो सकता है कांग्रेस का वोट बढ़े लेकिन कितना इफ़ेक्ट पड़ेगा यह तो समय बताएगा।


और अब नोटा
अब नोटा का नंबर आता है । हो भी क्यों न आखिर चुनाव आयोग ने यही तो एक अधिकार दिया है जिससे वोटर अपना मत दे सके कि जितने भी उम्मीदवार है सब बेकार है।


भाजपा के नाराजगी , सपा-बसपा गठबंधन से नाराज, एवं हिन्दू मुस्लिम की राजनीति, सीट पर नेता बदलने की राजनीति से नाराज युवा एवं एक जानकार तबका इस बार बड़ी मात्रा में वोट पर भी वोटिंग करेगा इसमे कोई दो राय नहीं है। अब देखना है है कि अपने क्षेत्र में पिछले कई वर्षों से विकास के कोई ठोस कदम न उठने से कितने लोग नोटा को वोट करते हैं हालांकि पिछली बार 6670 वोट नोटा पर गए थे।


चन्दन शर्मा (8318136664)


 

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